कहानी संग्रह >> गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह) गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ
एक रोज़ शाम के वक़्त मैं अपने कमरे में पलंग पर पड़ी एक किस्सा पढ़ रही थी, तभी अचानक एक सुन्दर स्त्री मेरे कमरे में आयी। ऐसा मालूम हूआ कि जैसे कमरा जगमगा उठा। रुप की ज्योति ने दरो-दीवार को रोशान कर दिया। गोया अभी सफ़ेदी हुई है। उसकी अलंकृत शोभा, उसका खिला हुआ, फूल जैसा लुभावना चेहरा, उसकी नशीली मिठास, किसकी तारीफ़ करुँ। मुझ पर एक रोब-सा छा गया। मेरा रुप का घमंड धूल में मिल गया है। मैं आश्चर्य में थी कि यह कौन रमणी है और यहाँ क्योंकर आयी। बेअख़्तियार उठी कि उससे मिलूँ और पूछूँ कि सईद भी मुस्कराता हुआ कमरे में आया। मैं समझ गयी कि यह रमणी उसकी प्रेमिका है। मेरा गर्व जाग उठा। मैं उठी ज़रुर पर शान से गर्दन उठाए हुए आँखों में हुस्न के रौब की जगह घृणा का भाव आ बैठा। मेरी आँखों में अब वह रमणी रुप की देवी नहीं डसने वाली नागिन थी। मैं फिर चारपाई पर बैठ गई और किताब खोलकर सामने रख ली- वह रमणी एक क्षण तक खड़ी मेरी तस्वीरों को देखती रही तब कमरे से निकली चलते वक़्त उसने एक बार मेरी तरफ़ देखा उसकी आँखों से अंगारे निकल रहे थे। जिनकी किरणों में हिंस्र प्रतिशोध की लाली झलक रही थी। मेरे दिल में सवाल पैदा हुआ- सईद इसे यहाँ क्यों लाया ? क्या मेरा घमण्ड तोड़ने के लिए ?
कथाक्रम
1. पुत्र-प्रेम
2. इज़्ज़त का ख़ून
3. होली की छुट्टी
4. नादान दोस्त
5. प्रतिशोध
6. देवी
7. खुदी
8. बड़े बाबू
9. राष्ट्र का सेवक
10. आख़िरी तोहफ़ा
11. क़ातिल
12. बोहनी
13. बन्द दरवाज़ा
14. तिरसूल
15. स्वाँग
16. सैलानी बंदर
17. नबी का नीति-निर्वाह
18. मंदिर और मसजिद
19. प्रेम सूत्र
20. ताँगेवाले की बड़
21. शादी की वजह
22. मोटेराम जी शास्त्री
23. पर्वत-यात्रा
24. कवच
25. दूसरी शादी
26. सौत
27. देवी
28. पैपुजी
29. क्रिकेट मैच
30. कोई दुख न हो तो बकरी खरीद लो
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